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प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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  मेरी पुस्तक * प्रतिबिंब*** प्रेरक कथायें एवं कहनियाँ * AMAZON पे उपलब्ध है। पढें पुस्तक समीक्षा---HindiKunj पर https://www.hindikunj.com/2020/10/pratibimb-prerak-kathayen.html?m=1 Book link---- https://www.amazon.in/dp/B08KSKBJBP/ref=cm_sw_r_wa_apa_dMvFFbG9EM8SD

LifePartner

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Marriage is like buying coal, Anyone can afford it. If your relationship survived in real life situation, Together shine like diamond. Which not everyone can make it. If your adrenaline is high,  one who supplement to make it low is your best guy. With whom your serotonin works more, And not let cortisol to pore. Who give your Somatotropin a kick, Act like Dopamine when you are sick. If you find all this in your soulmate, Obligate God for his best pick. Note-: Adrenaline hormone (increase heart rate,B.P) : Serotonin (happy/feel good hormone) :Cortisol(stress hormone) : Somatotropin (growth hormone) : Dopamine (neurotransmitters)

एक जेहादी से प्यार (कहानी)

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मुझे ख़ुद पे बड़ा गुमान रहता था कि शहर में अकेले रहते हुए भी अपने ही जीवन में व्यस्थ रहती थी।ऑफिस में तो सवाल ही नहीं कोई फालतू की बातें हंसी ठठ्ठा करूं। मैं अपने काम में पूरा वक़्त लगाती थी।पर जाने ये नए बंदे में क्या बात थी कि मेरी नजर एक सौ बार खामखां उसके चेहरे पे टिक हीं जाती थी। खामोश सा,अपने काम में व्यस्त।बस कॉफी पीने का शौख उसे अपने जगह से हिला पाता था।उस दिन मैं भी कॉफी मशीन के पास खड़ी थी।उसने सलीके से कहा था -पहले आप लेले।मैंने कहा ना ना women's equality का जमाना है।कोई पहले आप नहीं।मै हंस दी। वो भी जरा सा मुस्कुरा कॉफी लेने लगा। मैंने मौके पे चौका लगाते पूछ लिया " मैं राहिनी और आप? उसने बिना देखे कहा " राकिब" । मैंने दिल ही दिल कहा " ओह! मुसलमान।फिर तुरंत ख़ुद को समझा दिया।ये क्या फालतू बात सोची मैंने भी।दोस्ती करनी है शादी थोड़े ही। फिर तो जैसे मेरा रोज़ का काम हो गया उसपे नज़र रखना और साथ कॉफी पीना। वो कम बोलता था।ज्यादा कुछ बताता नहीं था अपने बारे में।पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं उसे सब बताने को तैयार रहती।जैसे आजतक मुझे किसी ने...

मकर सक्रान्ति की पतंग

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उड़ जाओ पतंग की तरह, की बड़ी दूर तलक  तुम्हें जाना है, आजमाइश में पड़कर ही ऊंचाईयों को पाना है। हवाओं की रुख से लोग, कुछ साथ देते कुछ रोकते, नज़र को तेज रखना, गले लगाकर भी तोड़ जाते लोग। अपने रास्ते की डोर अपने हाथ में रखना, कोई दबाना चाहे जो तुम्हें, तो मांझे से उसे काट के आगे बढ़ना। एक ही पतंग,एक ही है ये जीवन, चलना, थमना,थिरकना कन्ही उलझ भी जाओ, तो सुलझ के निकल जाओगे इस विश्वास पे तार तार होने से बचना।।

नया साल

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बड़ी आसान सी है ज़िन्दगी, नए पुराने साल कि तरह। पुराने गमों को भूल जाओ, नई उम्मीद में ढक लो, बना लो जोश की सतह। बस दो महीने हैं सिखाने वाले, वो एक दिसंबर कोई अपना, जो आपके दुखों को अपनाने वाले, कुछ दोस्त जनवरी जैसे, हाथ बढ़ा आगे बढ़ाने वाले। दिनों में तकदीर बदलती नहीं, पर जनवरी का जोश , फरवरी तक टिक जाता है। मार्च में रंगों में घुल, आंसू फिर से दुनिया रंगीन बना जाता है। अप्रैल मई की तो कोई बात नहीं, जून जुलाई में तो, आम जैसी रसीले बातों में ही वक़्त कट पाता है। अगस्त में आधी कटी ज़िन्दगी सी, सितंबर की बारिश में, धूल के फिर से नयापन लाती है। त्योहारों के जोश में, अक्टूबर में होश कन्हा आ पाता है। नवंबर की ठंडी हवाएं फिर से ज़ख्मों को हवा दे जाती हैं। क्या खोया क्या पाया इस साल सबका हिसाब, दिसंबर खुद में समेटे आता है। कुछ अधूरे सपने,कुछ छूटे अपने, कुछ खुशी के आंसू,कुछ गमों में दिल गुमसुम। नए ख़्वाब,कुछ अपने, नई सोच,कुछ करने। फिर से चले हैं पुराने तप के नये को गढ़ने।।

थोड़ी सी खुशी

बहुत दिन बाद पकड़ में आई... थोड़ी सी खुशी... तो पूछा ? "कहाँ रहती हो  आजकल.... ज्यादा मिलती नहीं..?" यही तो हूँ" जवाब मिला। बहुत भाव खाती हो खुशी ?.. कुछ सीखो  अपनी बहन से... हर दूसरे दिन आती है हमसे मिलने..  "परेशानी"। "आती तो मैं भी हूं... पर  आप ध्यान नही देते"। "अच्छा?". "कहाँ थी तुम जब पड़ोसी ने नई गाड़ी ली?" "और तब कहाँ थी जब रिश्तेदार ने बड़ा घर बनाया?" शिकायत होंठो पे थी   कि..... उसने टोक दिया बीच में.    "मैं रहती हूँ..… कभी आपकी बच्चे  की किलकारियो में, कभी रास्ते मे मिल जाती हूँ .. एक दोस्त के रूप में, कभी ... एक अच्छी फिल्म देखने में, कभी... गुम कर मिली हुई किसी  चीज़  में, कभी... घरवालों की परवाह  में, कभी ... मानसून की पहली बारिश में, कभी... कोई गाना सुनने में, दरअसल... थोड़ा थोड़ा बांट देती हूँ, खुद को छोटे छोटे पलों में.... उनके अहसासों में।💒💐       लगता है चश्मे का नंबर बढ़ गया है आपका.?     सिर्फ बड़ी चीज़ो में ही ढूंढते हो मुझे. ...

जंगल कि सीख(लघु कथा)

विनिता बैठे बैठे सोच रही थी शादी सोच समझ कर करनी चाहिए थी।वो छोटे परिवार में पली बढ़ी थी।वैसी ही आदत में भी था उसके।पर उसने खुद अपनी इच्छा से बड़े परिवार में शादी कि थी।वो जब भी अपनी दोस्त के घर जाती तो वहां उसके ताऊ ताई जी सबके बच्चे दादा दादी के बीच से उसे आने का मन ही नहीं होता था।कितना प्यार ,हंसना, बोलना, खेलने को इतने लोग।अपने घर में तो कभी कभी वो अकेले कमरे में बैठी रहती। दोस्त के घर कोई अकेलापन नहीं होता था।तभी से उसका मन था बड़े परिवार में शादी करूंगी। पर ये क्या! यहां वो उसि अकेलेपन को तरस जाती।उपर से बड़े जेठ अपने व्यापार में उसके पति के पैसे से अपनी संपत्ति बनाए जा रहे थे।रौनक बोलते मैं समझता हूं तुम्हारी बात।पर परिवार का मतलब यही होता है। छोटी बहन की शादी सर पर थी।सबकी नजरें भी मानो रौनक से ही सारी उम्मीदें लगाए बैठी थी। उफ्फ!अभी हम अलग रह रहे होते तो महल बना चुके होते।वो सोच ही रही थी कि रौनक आ गए।वो मुंह फेर लेती है।इस इंसान को कुछ भी समझाना बेकार है।रौनक समझ जाता है अनकही बातें।यही शायद इस रिश्ते की खूबसूरती थी। रौनक - प्यार से बोला "विनी चलो हम दो दिन के लि...

उठो चलो....

उठो चलो कि लहरे अभी बाकी है, आवाज से गहराई नापने को मन अभी साकी है। जी लो आज की कल किसने देखा है, मन में यादों की परत जमा लो कि एकांत में अकेलापन से झूझते बहुतों को देखा है।। चलो अपनी राह जन्हा हो मन की चाह, कि लोगों की बाते सुन बहुतों को हारते देखा है।। हंसो की धूल जाए हर गम सिकवा या शिकायत, की लोगों को बस कमियों को ही गिनते देखा है। बातों और साथ में खुशी समेटो, की पैसों के दिखावे में रिश्तों को रिश्ते देखा है।। उठो चलो कि लहरे अभी बाकी हैं, आवाज में गहराई नापने को मन अभी साकी है।।