बड़ी आसान सी है ज़िन्दगी, नए पुराने साल कि तरह। पुराने गमों को भूल जाओ, नई उम्मीद में ढक लो, बना लो जोश की सतह। बस दो महीने हैं सिखाने वाले, वो एक दिसंबर कोई अपना, जो आपके दुखों को अपनाने वाले, कुछ दोस्त जनवरी जैसे, हाथ बढ़ा आगे बढ़ाने वाले। दिनों में तकदीर बदलती नहीं, पर जनवरी का जोश , फरवरी तक टिक जाता है। मार्च में रंगों में घुल, आंसू फिर से दुनिया रंगीन बना जाता है। अप्रैल मई की तो कोई बात नहीं, जून जुलाई में तो, आम जैसी रसीले बातों में ही वक़्त कट पाता है। अगस्त में आधी कटी ज़िन्दगी सी, सितंबर की बारिश में, धूल के फिर से नयापन लाती है। त्योहारों के जोश में, अक्टूबर में होश कन्हा आ पाता है। नवंबर की ठंडी हवाएं फिर से ज़ख्मों को हवा दे जाती हैं। क्या खोया क्या पाया इस साल सबका हिसाब, दिसंबर खुद में समेटे आता है। कुछ अधूरे सपने,कुछ छूटे अपने, कुछ खुशी के आंसू,कुछ गमों में दिल गुमसुम। नए ख़्वाब,कुछ अपने, नई सोच,कुछ करने। फिर से चले हैं पुराने तप के नये को गढ़ने।।