मुझे ख़ुद पे बड़ा गुमान रहता था कि शहर में अकेले रहते हुए भी अपने ही जीवन में व्यस्थ रहती थी।ऑफिस में तो सवाल ही नहीं कोई फालतू की बातें हंसी ठठ्ठा करूं। मैं अपने काम में पूरा वक़्त लगाती थी।पर जाने ये नए बंदे में क्या बात थी कि मेरी नजर एक सौ बार खामखां उसके चेहरे पे टिक हीं जाती थी।
खामोश सा,अपने काम में व्यस्त।बस कॉफी पीने का शौख उसे अपने जगह से हिला पाता था।उस दिन मैं भी कॉफी मशीन के पास खड़ी थी।उसने सलीके से कहा था -पहले आप लेले।मैंने कहा ना ना women's equality का जमाना है।कोई पहले आप नहीं।मै हंस दी। वो भी जरा सा मुस्कुरा कॉफी लेने लगा।
मैंने मौके पे चौका लगाते पूछ लिया " मैं राहिनी और आप? उसने बिना देखे कहा " राकिब" ।
मैंने दिल ही दिल कहा " ओह! मुसलमान।फिर तुरंत ख़ुद को समझा दिया।ये क्या फालतू बात सोची मैंने भी।दोस्ती करनी है शादी थोड़े ही।
फिर तो जैसे मेरा रोज़ का काम हो गया उसपे नज़र रखना और साथ कॉफी पीना।
वो कम बोलता था।ज्यादा कुछ बताता नहीं था अपने बारे में।पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं उसे सब बताने को तैयार रहती।जैसे आजतक मुझे किसी ने सुना हीं ना हो।
एक दिन ऑफिस की पार्टी में मैं राकिब को पिक करने उसके घर पहुंच गई।मैंने सोचा मैं ड्राइव करती हूं तुम्हारा घर रास्ते में है तो लेते चलूं।तुम नए हो ना यन्हा! मैं सफाई दे रही थी शायद।
पर उसे मेरा उसके घर तक पहुंचना सही नहीं लगा शायद।
ये उसके चेहरे पे दिख रहा था।फिर भी उसने कहा - मै जैकेट लेके आता हूं। वो अंदर एक कमरे में चला गया।और मैं यहां-वहां चहलकदमी करने लगी जैसे उसके घर को ही देख सब जान जाऊं। वो तो कुछ बताता नहीं।
तभी सामने के डेस्क पे लैपटॉप दिखा।खुला हुआ था। वो सरसरी निग़ाहों से झांकती है।पता नहीं कैसा नक्शा सा खुला हुआ था।और बीच में सर्कल बना लिखा था * टारगेट* कुछ आईडी भी शायद! मैं थोड़ा और झुक पढ़ने की कोशिश हीं कर रही थी कि राकिब ने धप्प से लैपटॉप बंद कर दिया।और तंज आवाज़ में बोला - वैसे आजके जमाने में किसी अनजान लड़के के घर यूंही नहीं आ जाना चाहिए।
वो थोड़ा घबरा गई फिर भी हिम्मत करके बोली - इतना विश्वास तो है तुमपे।इतने भी अनजान नहीं हो!"
राकिब बोला - अच्छा!विश्वास कब टूट जाए पता नहीं चलता।
इस बार राहिनी सकपका गई।पीछे की तरफ़ हटने लगी। राकिब को बुरा लगा अपनी हीं बात पे।उसने आवाज़ दिया।मुमानी जान! दरवाज़ा बंद कर ले हम निकल रहे हैं।
निकलते हुए राकिब ने उससे कहा - देखा इतना भी भरोसा नहीं था न?
राहीनी ख़ुश थी क्योंकि आज के वाकिये से ये तो पता चल गया था कि राकिब अच्छा लड़का है।उसने उसकी घबराहट देख कैसे उसे एहसास दिला दिया कि और भी लोग हैं घर में डरने कि जरूरत नहीं।
राहिनि हर दिन राकिब का कोई ना कोई अच्छा पहलू निकाल ही लेती थी । वो हर तरह से अपने पापा को मना लेगी।हिन्दू मुस्लिम कुछ नहीं होता।इंसान अच्छा होना चाहिए।वह मन हीं मन में सब बातें तैयार कर चुकी थी पापा को मानने के लिए।बस एक बार राकिब हां कर दे।वह भी उसे पसंद तो करता था।नहीं तो औरों से तो वह बात भी नहीं करता था।
उसने ठान लिया लड़की होते हुए भी उसे ही पहल करनी होगी।वह कोई ,22साल की नहीं की सही ग़लत समझ ना पाए।या ये बस attraction हो।वह 30साल की थी।वह जानती थी उसे क्या चाहिए।
राकिब! राहिनी पुकार रही थी।राकिब रुका।वह बस अपने घर की सीढ़ियां हीं चढ़ने वाला था।
तुम यहां?उसने कुछ घबराते हुए पूछा!
हां तुमसे कुछ बात करनी थी।ऑफिस सही जगह नहीं थी उसके लिए।तो यहां आ गई।थोड़े देर बैठ के बात कर सकते हैं? राहिनी ने हां सुनने के लिए हीं पूछा था।
पर राकिब ने इनकार कर दिया।घर पर तो बिल्कुल नहीं। कहीं और चलो।
पर क्यो ? राहिनी ने पूछा।वह शायद उसे भरोसा दिलाना चाहती थी कि उसे राकिब पे भरोसा है।
वो दरवाजे पे जाके खड़ी हो गई।बेल बजाने लगी।पर दरवाज़ा तो बाहर से बंद था।मुमानी जान नहीं है लगता है? वो बोली।राकिब ने आगे बढ़ के ताला खोला।मुमानी जान उस दिन भी नहीं थी।बस तुम्हारा डर दूर करने को बोला था।
राहिनी उसे और प्यार से देखते अंदर आ गई।जैसे उसका अपना घर हो।
डेस्क पे लैपटॉप खुला हुआ था।एक छोटा सा फोन बीप बीप आवाज़ कर रहा था।राकिब भागते हुए उठाया।फिर पता नहीं क्या बोला।आखिरी अल्फ़ाज़ सुन राहिनी के होश उड़ गए। * जान का बदला जान * अल्लाह हाफ़िज़ ! ये क्या था।ये कौन था।
वह कुछ पूछती तबतक राकिब ने कहा - तुम उलझो कुछ पूछो उससे अच्छा है अभी भी यहां से चली जाओ।तुमने गलत इंसान को पसंद कर लिया है।जाओ अपनी ज़िन्दगी जिओ।मेरे पास पल बहुत कम हैं।
राहिनी घबरा भी रही थी आंखो से आंसू भी बहे जा रहे थे।उसने राकिब की पतली पतली गोरी उंगलियों को देखा।रोज ही देख वह सोचती उसकी उंगलियां उसकी हथेली में कैसी लगेंगी।और मुलायम से एहसास से रोज भर जाया करती थी।पर आज वही गोरी उंगलियों में लाल ये क्या दिख रहा था।*जान के बदले जान * क्या वो जो समझ रही थी वो सच था।वह नक्शा जो उसने उस दिन देखा था,वह टारगेट उसे देखा सा लगा था।अपने ही शहर का सबसे व्यस्त चौराहा।ये सब क्या है?नहीं ये नहीं हो सकता।
राकिब को उसने बहुत पास से देखा है।उस दिन तेज़ आती बस के सामने से एक कुत्ते के बच्चे को बचा लाया था वो।ऑफिस में मजाक मजाक में कितना सराहा गया था उसे।
तभी राकिब ने कहा - मुझे पता है तुम मुझे पसंद करती हो।तुम भी मुझे अच्छी लगती हो इसलिए ये सच्चाई मैं तुमसे छुपाना भी नहीं चाहा और घर में आने दिया।
देखो राहिनी मेरा कोई नहीं । ना अम्मी ना अब्बू ना मुमानी कोई भी नहीं।सबको इस मुल्क ने मुझसे छीन लिया है। मैं यहां एक मिशन पे हूं। मैं * जेहादी हूं*।
जेहादी अल असगर!मुसलमानों पे जितनी ज्यादतियां हुई हैं खुद मेरे अम्मी अब्बू को जिनलोगो ने मारा मैं उन्हें जीने नहीं दूंगा। वो गुस्से में भरा हुआ था।
फिर भी जाने क्यों मुझे डर नहीं लग रहा था।बस दुःख था।पूरी दुनिया में मुझे तुम्हीं क्यो पसंद आए राकिब?उसने खुद से पूछा या राकिब से उसे नहीं पता था।
राकिब थोड़ा नरम पड़ गया।
आजतक उसने कुछ नहीं कहा था खुद के बारे में उसे। आज एक एक सिरा खुल रहा था।* राहिनी मैं महज 5साल का था जब हमारे घर में आग लगा दी गई क्योकि हम मुसलमान थे,उन्हें लगता था हम आतंकवादियों से जुड़े हुए हैं।कोई कसूर नहीं था हमारा बस इतना की हमें भी काश्मीर से उतना ही प्यार था जितना उन्हें।वह हमारा चमन था।पर दंगे में किसी ने नहीं देखी अम्मी अब्बा की पाक रूह जो रोज ,5नमाज में बस काश्मीर में अमन की दुआ करते थे।मुझे वतनपरस्त के मायने समझाते थे।किसी ने कुछ नहीं देखा और जला दिया हमारे घर को।सब खत्म हो गया।बस मैं रह गया।वह घुटनों पे बैठ रोने सा हो गया।मुझे जेहादियों ने बचा लिया और तबसे मैं बस वहीं बड़ा हुआ उस दर्द को याद कर।चिखो के बीच बदले कि आग लिए।बस मुझे भी कुर्बानी देनी है उसी के लिए यहां आया हूं मिशन पे।
फिर वह उठ खड़ा हुआ जैसे उसे सब याद आ गया हो।फिर वह राहिनी को देखता है।उसके आंसू को उंगली पे संभाल उसने कहा।मुझे माफ़ कर देना। मैं यहां किसी से जुड़ने नहीं आया था।पर तुमने मुझे कभी भी मौका हीं नहीं दिया दूर होने का।उस दिन जब किसी तेज़ धार से मेरी उंगली से खून निकल गया तो तुम ऐसे घबरा गई।मुझे आजतक इतने खून देख दर्द महसूस नहीं हुआ जितना तुम्हारे घबरा जाने से हुआ।तुम जब मेरे खाना ना खाने से मेरी तबीयत की पूरी जांच-पड़ताल कर देती थी तो मुझे लगा तबीयत का भी कोई रूप होता है ।बचपन से अभी तक हमें कभी तबीयत खराब भी होती है बताया ही नहीं गया।जेहादी का हर दिन बस युद्ध का होता है।हर दिन उसे तैयार किया जाता है जान लेने के लिए जान देने के लिए।
उस दिन पार्टी से आते वक़्त मेरी आंख झपक गई तो तुमने हाथ लगा गर्दन झूलने से बचा लिया।और बाकी रास्ते मैं सोचता रहा मैंने तो आजतक कितने ही गर्दन झूलने दिए हैं। कटे हुए।वह आंखे भींच लेता है।
राहिनी की चीख निकल जाती है।
नहीं राकिब तुम ऐसे नहीं हो सकते।नहीं हो सकते। तुम्हें तो एक्वेरियम में मछली देख घुटन हो गई थी।तुम किसी को मार नहीं सकते। ईधर देखो तुम।वह उसकी ठुडी अपने तरफ घुमा के पूछती है तुम ही थे ना जो रीना को रोते देख बॉस से उसके लिए लड़ आए थे क्यूंकि बॉस ने उसकी सैलरी काट दी थी? तुम्हें किसी का रोना नहीं देखा जाता और तुम किसी को मार सकते हो?
तभी वो छोटा फोन बीप की आवाज देता है।राकिब जैसे किसी नींद से जाग गया।तुम जाओ यहां से जल्दी।मुझे तैयारी करनी है। जाओ।वह उसे धक्का देते घर के दरवाजे तक लेे आता है।अब मैं वापस नहीं लौट सकता। यह कह कर वह दरवाज़ा बंद कर देता है।
राहिनी भागते हुए कार में बैठ घर आती है।बाथरूम में ख़ुद को बंद कर वह रोते रोते अचानक चौंकती है ।टारगेट पे जो दिन लिखा था।वह आज का ही था।वह ख़ुद को झकझोर कर कहती है।नहीं मैं उसे ये नहीं करने दे सकती।समय कम था।वह पुलिस के पास जाके सब बातें बताती है और रिक्वेस्ट करती है कि उसे बात करने का मौका दे।वह उसे रोक सकती है।
राहिनी के पीछे पुलिस सादे कपड़ों में चौक पे पहुंचती है।राहिनी यहां वहां नजरों से राकिब को ढूंढते हुए एक कॉफी शॉप के बाहर खड़ी हो जाती है।तभी राकिब की आवाज़ आती है।
आप कॉफी लेंगी? राहिनी का गला भर आता है।क्या मैं इस राकिब की
इतला कर आई हूं पुलिस को।क्या ये एक मासूम बच्चा नहीं जिसे जो सिखाया गया जो दिखाया गया वहीं समझा?इसमें इसका क्या कसूर!
राकिब बोला - मुझे पता था तुम जरूर आओगी।तुमने लैपटॉप पे ये जगह देख ली थी ना?पर कुछ बदल नहीं सकता।
राहिनी हमेशा उसकी उंगलियों को गौर से देखती थी आज उसने उनको थाम लिया।राकिब पता है मेरे घर में भी आग लग गई थी और मेरी मां उसमें खाक हो गई थीं।जानते हो कैसे लगी? मैं और पापा दीवाली पे बाहर रॉकेट जला रहे थे और रॉकेट गलती से खिड़की से किचेन में चला गया। गैस सिलिंडर फट गया।मम्मी वही थीं।क्या हमने मार दिया मां को?हम किससे बदला ले राकिब।क्या आज जीनलोगो को मारने आए हो ये जानते हैं किसने मारा तुम्हारे अम्मी अब्बा को?वह देखो कहीं किसी के अब्बू खड़े हैं किसी कि अम्मी।इस भीड़ में तुम सबका कोई ना कोई रिश्ता छीनने आए हो ।ये कैसा जेहाद है राकिब।जो कहता है सबको दर्द दो। छीन लो उनका कोई अपना।
राकिब की आंखे भर आती हैं।तुम जाओ यहां से राहिनी।जाओ।अचानक राकिब से बीप बीप की आवाज़ आती है।पुलिस जो सादे कपड़ों में थी अलर्ट हो जाती है। बंदुकें निकाल ली जाती हैं।
राहिनी तुम पुलिस के साथ आई हो?राकिब चौंकता है।पुलिस घेरा बना के सबको दूर जाने को माइक से अनाउंस करती है।
राकिब एक मानव बॉम्ब था।मानव बम।राहिनी घबरा जाती है।
राकिब दूर जाता चिल्ला रहा होता है तुमने भी धोखा दिया।तुम भी वही निकलीं।तुम जैसो ने ही प्यार से हमें नफरत करना सिखाया है।वह चिल्ला रहा था। मैं यहां किसी को ख़त्म नहीं करता अगर तुम साथ देती।पर तुमने धोखा दिया।पुलिस लेे आई।
राहिनी को पुलिस उससे दूर खींचे जा रही थी।वह चिल्लाती हुए पुलिस से कहती है " सर! बम की मशीन मेरे अंदर भी है।सब उसका हाथ छोड़ देते हैं।राहिनी तेजी से दौड़ते हुए कहती है राकिब मैं तुमसे धोखा नहीं कर सकती।जेहाद की आग प्यार से ही ख़त्म होगी।वह राकिब को कस के पकड़ लेती है ।एक धमाका होता है फिर खामोशी।
अगले दिन के अख़बार की हेडलाइन थी " प्यार ने जेहाद को समेट लिया।"खतरा टला।
हर जगह न्यूज चैनल पर राकिब की चिट्ठी पढ़ी जा रही थी जो उसने राहिनी को लिखी थी।वह जहां तक आ गया था उसका लौटना मुमकिन नहीं था ना वह खुद को माफ़ कर पाता उन कई मौत के लिए जो उसके सामने हुए।पर आज वो किसी का नुक़सान नहीं करेगा।बस खुद की कुर्बानी देगा।
दूसरी तरफ़ राहिनी ने अपने पापा को लिखा था। मैं आज आऊंगी की नहीं पता नहीं पर मैंने एक सही लड़के से प्यार किया था।वह मासूम है उसे बस प्यार ही रोक सकता है और आगे भी जेहाद को बस प्यार ही रोक सकता है।दर्द मिला तो दर्द देने से कम नहीं होगा।ये समझाने जा रही हूं।एक जेहादी को जेहाद का मतलब समझाने जा रही हूं।ना लौट पाई तो सोचना इस देश के लिए शहिद हो गई। ताकि आगे कोई जेहादी ये कहानी सुने तो उसे प्यार पे भरोसा हो सके।
प्यार हीं जेहाद का अंत है।
Awesome Story
जवाब देंहटाएंWah, awesome story....end to bht achhi hai....dil ko chu gayi....
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