प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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मकर सक्रान्ति की पतंग

उड़ जाओ पतंग की तरह,
की बड़ी दूर तलक  तुम्हें जाना है,
आजमाइश में पड़कर ही ऊंचाईयों
को पाना है।

हवाओं की रुख से लोग,
कुछ साथ देते कुछ रोकते,
नज़र को तेज रखना,
गले लगाकर भी तोड़ जाते लोग।

अपने रास्ते की डोर अपने हाथ में रखना,
कोई दबाना चाहे जो तुम्हें,
तो मांझे से उसे काट के आगे बढ़ना।

एक ही पतंग,एक ही है ये जीवन,
चलना, थमना,थिरकना
कन्ही उलझ भी जाओ,
तो सुलझ के निकल जाओगे इस विश्वास पे तार तार होने से बचना।।

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