प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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हाय रे! ये प्यारा बचपन
चंचल चपल नटखट आंखों में,
निश्चल निर्मल प्यारा बचपन।

कभी शरारत कर भागे,
कभी आंसू में गलतियों को छिपा ले,
शिकवों शिकायतों से परे ये बचपन।

शब्दों को बुनते बुनते
इशारों में अनकही कहते,
जिजीविषा जीवंत बनाता बचपन।

अंतर्मन में तेरे हर पल को
चाहूं बांधना तेरा बचपन,
पल प्रतिपल निकलता हाय ये तेरा बचपन।

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