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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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एक जेहादी से प्यार (कहानी)

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मुझे ख़ुद पे बड़ा गुमान रहता था कि शहर में अकेले रहते हुए भी अपने ही जीवन में व्यस्थ रहती थी।ऑफिस में तो सवाल ही नहीं कोई फालतू की बातें हंसी ठठ्ठा करूं। मैं अपने काम में पूरा वक़्त लगाती थी।पर जाने ये नए बंदे में क्या बात थी कि मेरी नजर एक सौ बार खामखां उसके चेहरे पे टिक हीं जाती थी। खामोश सा,अपने काम में व्यस्त।बस कॉफी पीने का शौख उसे अपने जगह से हिला पाता था।उस दिन मैं भी कॉफी मशीन के पास खड़ी थी।उसने सलीके से कहा था -पहले आप लेले।मैंने कहा ना ना women's equality का जमाना है।कोई पहले आप नहीं।मै हंस दी। वो भी जरा सा मुस्कुरा कॉफी लेने लगा। मैंने मौके पे चौका लगाते पूछ लिया " मैं राहिनी और आप? उसने बिना देखे कहा " राकिब" । मैंने दिल ही दिल कहा " ओह! मुसलमान।फिर तुरंत ख़ुद को समझा दिया।ये क्या फालतू बात सोची मैंने भी।दोस्ती करनी है शादी थोड़े ही। फिर तो जैसे मेरा रोज़ का काम हो गया उसपे नज़र रखना और साथ कॉफी पीना। वो कम बोलता था।ज्यादा कुछ बताता नहीं था अपने बारे में।पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं उसे सब बताने को तैयार रहती।जैसे आजतक मुझे किसी ने...

मकर सक्रान्ति की पतंग

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उड़ जाओ पतंग की तरह, की बड़ी दूर तलक  तुम्हें जाना है, आजमाइश में पड़कर ही ऊंचाईयों को पाना है। हवाओं की रुख से लोग, कुछ साथ देते कुछ रोकते, नज़र को तेज रखना, गले लगाकर भी तोड़ जाते लोग। अपने रास्ते की डोर अपने हाथ में रखना, कोई दबाना चाहे जो तुम्हें, तो मांझे से उसे काट के आगे बढ़ना। एक ही पतंग,एक ही है ये जीवन, चलना, थमना,थिरकना कन्ही उलझ भी जाओ, तो सुलझ के निकल जाओगे इस विश्वास पे तार तार होने से बचना।।

नया साल

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बड़ी आसान सी है ज़िन्दगी, नए पुराने साल कि तरह। पुराने गमों को भूल जाओ, नई उम्मीद में ढक लो, बना लो जोश की सतह। बस दो महीने हैं सिखाने वाले, वो एक दिसंबर कोई अपना, जो आपके दुखों को अपनाने वाले, कुछ दोस्त जनवरी जैसे, हाथ बढ़ा आगे बढ़ाने वाले। दिनों में तकदीर बदलती नहीं, पर जनवरी का जोश , फरवरी तक टिक जाता है। मार्च में रंगों में घुल, आंसू फिर से दुनिया रंगीन बना जाता है। अप्रैल मई की तो कोई बात नहीं, जून जुलाई में तो, आम जैसी रसीले बातों में ही वक़्त कट पाता है। अगस्त में आधी कटी ज़िन्दगी सी, सितंबर की बारिश में, धूल के फिर से नयापन लाती है। त्योहारों के जोश में, अक्टूबर में होश कन्हा आ पाता है। नवंबर की ठंडी हवाएं फिर से ज़ख्मों को हवा दे जाती हैं। क्या खोया क्या पाया इस साल सबका हिसाब, दिसंबर खुद में समेटे आता है। कुछ अधूरे सपने,कुछ छूटे अपने, कुछ खुशी के आंसू,कुछ गमों में दिल गुमसुम। नए ख़्वाब,कुछ अपने, नई सोच,कुछ करने। फिर से चले हैं पुराने तप के नये को गढ़ने।।