आज सौम्य ने सुधा को पहली बार मिलने बुलाया था। वो लगभग रोज हीं मिल लेते थे, एक दूसरे के घर के पास जो रह्ते थे। पर हर बार सुधा को हीं सौम्य की जरुरत होती थी। उसका कोई काम हीं नहीं हो पाता था बिना उसके सलाह के। आपस में घर वालों के अच्छे सम्बन्ध थे। सौम्य को सुधा के पापा सबसे भरोसे वाला समझते तो उसकी पढ़ाई या किसी बात के लिये वो उसी से मशवरा करते। आज सुधा खोए हुए अतीत की बातों से मन- मस्तिस्क झकझोरते हुए सौम्य के घर की तरफ बढ़े जा रही थी। आज क्या बात होगी जो सौम्य ने बुलाया मिलने को! मन में हजारों सवालों और फिक्र लिये जब वो सौम्य के कमरे में पहुँची उसे ध्यान आया वो दुपट्टा भी लेना भूल गई। सौम्य को देखते उसकी आँखे थोड़ी सी झुक गई! सौम्य ने उसका हाथ थाम कुर्सी पे बैठाते हुए कहा - " मैं हीं हूँ सुधा घबराओ मत। " पर सुधा तो ठंडी पड़ चुकी थी। उसने सौम्य को ऐसे कभी नहीं देखा था। वो तो अपनी हर परेशानी, समझ,सब कुछ कहने पूछने के लिये बचपन से हीं सौम्य के पास भागी आती और एक शिक्षक की तरह वो उसका मार्गदर्शन करता। आज सौम्य बदला हुआ सा था । वो सुधा के पास नीचे बैठते ...