एक उद्योगपति अपने दोस्त के बहुत कहने पे एक बार उस दोस्त के बताए आश्रम में गया। उसका दोस्त जिस गुरु को मानता था उनसे उसे मिलाना चाहता था।
दोनों साथ गए। वहां काफी भीड़ थी पर सब साथ शांति से नीचे बैठे हुए गुरु की बातें सुन रहे थे, अपने प्रश्न रख रहे थे। उद्योगपति को सबकी बातें बनावटी लग रही थी।
उसने खड़े होकर गुरु से पूछा ' हमें गुरु की आवश्यकता ही क्यों है। मैं आज जिस सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा हूं अपनी लगन अपनी मेहनत से पहुंचा हूं। मैं अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश हूं। सबकुछ है मेरे पास। मुझे गुरु कि क्या आवश्यकता? '
गुरु मुस्कुराए - ' तुम बिल्कुल सही हो। तुम्हें गुरु की बिल्कुल भी जरूरत नहीं। फिर उससे पूछे - अच्छा एक बात बताओ - ' तुम्हें भूख लगती है तो कौन बताता है कि तुम्हें भूख लगी है?
उद्योगपति हसने लगा - ' भूख लगेगी जब पेट ख़ाली होगा, शरीर बताएगा।'
गुरु - ' बस वैसे हीं जब मन बाहरी आडंबरों से ख़ाली हो जाएगा और उसे भूख लगेगी, तब उसे जरूरत महसूस होगी आत्म ज्ञान की, शांति की।
उन्होंने आगे कहा - ' हर इंसान मेहनत करता है। सबको खाना चाहिए। बहुतों को बहुत कुछ चाहिए। ये सब जरूरी है। तन के लिए सब कुछ जरूरी है। पर मन इन सब को पाकर कहां संतुष्ट होता है। वो और और की रट लगाए रहता है। पर जब वह तृप्त नहीं होता और उस तृप्ति को पाने की प्यास लिए भटकता है। तब उसे गुरु की आश्यकता होती है। जो तुम्हें अभी नहीं हुई या शायद आज हो जाए'- वो मुस्कुराते हुए कहते हैं।
उद्योगपति सोच में पड़ जाता है। ये तो सच है कि और और पाने कि लालसा में वो भी दिन रात लगा रहता है पर कभी ये चाहत ख़तम नहीं होती। ना हीं ऐसा है कि हर चीज़ पाकर उसकी ख़ुशी बरकरार रहे।
गुरु उसे सोच में डूबा हुआ देख बोलते हैं - ' हर वस्तु या पैसे कि ख़ुशी कुछ दिन तक होती है पर मन अगर अपनी ख़ुशी ढूंढ ले तो फिर कुछ ना मिलने का दुख भी आपको परेशान नहीं करता।
उद्योगपति ख़ुद को संभाल नहीं पाता वो गुरु से हाथ जोड़ कहता है ' ये कैसे प्राप्त होगा। '
गुरु उसे बैठ जाने को कह कर सबको ध्यान की विधि बताते हैं। सब ध्यान में लीन हो गए और आंखे बंद उद्योगपति को लगा उसे प्यास लगी है पर ये प्यास गले को नहीं हृदय को लगी थी। उसे अपना पूरा जीवन घूमता नज़र आ रहा था जिसमें सब कुछ था पर आत्मसंतुष्टि नहीं। उसकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगती है।
ध्यान ख़तम होता है। वो गुरु के पास जाके हाथ जोड़ खड़ा हो जाता है। मेरे पास सबकुछ है पर ....गुरु उसका हाथ थाम लेते हैं। मैं हूं जो नहीं है उसे प्राप्त करने का मार्ग दिखाने के लिए।
उद्योगपति कह उठता है - ' आपके जैसे सच्चे गुरु की आवश्यकता सबको है। ईश्वर करे इस प्यास को हर इंसान समझ पाए।'
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Meaningful story
जवाब देंहटाएंprerak!!
जवाब देंहटाएंinspirational....vary nice
जवाब देंहटाएंwaah*
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