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प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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सावन की याद(लघुकथा)

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बाहर टिप-टिप पानी बरस रहा था पर बिनोद की आंँखे अश्रुधारा से विमुख चिंता की अग्नि में सूख रहीं थीं। तभी छोटे भाई ने आवाज़ लगाई-"भैया! चलो अमियाँ की बगिया तक घूम आए।" आज बाबूजी की बरसी के बाद उनके कहे अनुसार खेतों का बंटवारा हो गया था। छोटा भाई शहर रहता था शायद ज़मीन बेच लौट जाए! उसका क्या होगा? अभी तक सारी ज़मीन पर वही फ़सल उपजा अपने परिवार का पेट भरता था। वही उसकी जीविकाआपूर्ति का साधन था।     छोटे भाई की आवाज़ से उसकी सोच टूटी-"भाई जी! याद है बचपन में बगीचे से जो हम आम तोड़ते हर बार आपसे ज़्यादा छीन कर मैं भाग जाता था।" बाबू जी हमेशा आपको समझा दिया करते कि बड़े को त्याग करना पड़ता है, जाने दो और मैं हँस कर भाग जाया करता था।     शहर की ज़िंदगी में मैंने समझा त्याग क्या होता है! वहाँ हर व्यक्ति आगे बढ़ने की लालसा में अपने से छोटे को पीछे धकेल देता। आगे बढ़ने की होड़ में अपना पराया समझ पाना मुश्किल हो गया था मेरे लिए क्योंकि मैं तो प्यार- त्याग की छाँव में पनपा था।     तब मुझे आपका हर त्याग याद आता। मुझे आगे बढ़ाने के लिए ख़ुद आप दिन रात खेत में त...

गुरु पूर्णिमा (लघु कथा)

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एक उद्योगपति अपने दोस्त के बहुत कहने पे एक बार उस दोस्त के बताए आश्रम में गया। उसका दोस्त जिस गुरु को मानता था उनसे उसे मिलाना चाहता था।           दोनों साथ गए। वहां काफी भीड़ थी पर सब साथ शांति से नीचे बैठे हुए गुरु की बातें सुन रहे थे, अपने प्रश्न रख रहे थे। उद्योगपति को सबकी बातें बनावटी लग रही थी।          उसने खड़े होकर गुरु से पूछा ' हमें गुरु की आवश्यकता ही क्यों है। मैं आज जिस सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा हूं अपनी लगन अपनी मेहनत से पहुंचा हूं। मैं अपनी ज़िन्दगी में ख़ुश हूं। सबकुछ है मेरे पास। मुझे गुरु कि क्या आवश्यकता? ' गुरु मुस्कुराए - ' तुम बिल्कुल सही हो। तुम्हें गुरु की बिल्कुल भी जरूरत नहीं। फिर उससे पूछे - अच्छा एक बात बताओ - ' तुम्हें भूख लगती है तो कौन बताता है कि तुम्हें भूख लगी है?            उद्योगपति हसने लगा - ' भूख लगेगी जब पेट ख़ाली होगा, शरीर बताएगा।' गुरु - ' बस वैसे हीं जब मन बाहरी आडंबरों से ख़ाली हो जाएगा और उसे भूख लगेगी, तब उसे जरूरत महसूस होगी आत्म ज्ञान की, शा...