मुनिया की उमर कम थी पर समझदारी दादी मां की बातों सी।अक्सर गांव घर से घूम के जब घर आती और देखती घर में खाना ना के बराबर बचा है तो किसी भी काकी मां का नाम ले केह देती वहां खा लिया बहुत।पर मां समझ जाती, वॊ मां जो थी।👩👧 थोड़ा बहुत खिला ही देती जिद्द कर। मुनिया की आधी भूख मिट जाती जब वो अपनी किताबे देखती📗। मास्टरनी जी ने घर घर बांटी थी, कहा था स्कूल आने को।पर बाबूजी कहते गरीब को खाना चाहिए होता है ना कि पढ़ाई। मां जिन मेम साहब के यहां काम करती वो अपनी बेटी के पास मुनिया को भेजना चाहती थी।उनकी बेटी ने मुनिया को बुलाया मिलने के लिए।मुनिया दीदी की बेटी को खूब खिला लेती थी। दीदी जी ने मुनिया से पूछा क्या अच्छा लगता तुझे, कोई काम आता भी है कि नहीं? मुनिया मुस्कुराकर 🙂बोली *मुझे पढ़ना पसंद है मै ना बाबू को सब पढ़ा दूंगी। दीदी खिलखिला के हंस पड़ी अरे पगली ! मैं तुझे बाबू को संभालने को ले जाने का सोच रही,तुझे पढ़वाने को ले जाऊंगी।पर सोच रही क्या करू,तू अभी ख़ुद छोटी सी है। मुनिया ने बड़ी समझदारी से कहा*मन से पूछ लो दीदी जी। मन सही बात बता देता है।*😌 बस ये है की हम समझ पाते कि नह...