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प्रतिबिंब***प्रेरक कथायें By प्रेरणा सिंह

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  मेरी पुस्तक * प्रतिबिंब*** प्रेरक कथायें एवं कहनियाँ * AMAZON पे उपलब्ध है। पढें पुस्तक समीक्षा---HindiKunj पर https://www.hindikunj.com/2020/10/pratibimb-prerak-kathayen.html?m=1 Book link---- https://www.amazon.in/dp/B08KSKBJBP/ref=cm_sw_r_wa_apa_dMvFFbG9EM8SD

थोड़ी सी खुशी

बहुत दिन बाद पकड़ में आई... थोड़ी सी खुशी... तो पूछा ? "कहाँ रहती हो  आजकल.... ज्यादा मिलती नहीं..?" यही तो हूँ" जवाब मिला। बहुत भाव खाती हो खुशी ?.. कुछ सीखो  अपनी बहन से... हर दूसरे दिन आती है हमसे मिलने..  "परेशानी"। "आती तो मैं भी हूं... पर  आप ध्यान नही देते"। "अच्छा?". "कहाँ थी तुम जब पड़ोसी ने नई गाड़ी ली?" "और तब कहाँ थी जब रिश्तेदार ने बड़ा घर बनाया?" शिकायत होंठो पे थी   कि..... उसने टोक दिया बीच में.    "मैं रहती हूँ..… कभी आपकी बच्चे  की किलकारियो में, कभी रास्ते मे मिल जाती हूँ .. एक दोस्त के रूप में, कभी ... एक अच्छी फिल्म देखने में, कभी... गुम कर मिली हुई किसी  चीज़  में, कभी... घरवालों की परवाह  में, कभी ... मानसून की पहली बारिश में, कभी... कोई गाना सुनने में, दरअसल... थोड़ा थोड़ा बांट देती हूँ, खुद को छोटे छोटे पलों में.... उनके अहसासों में।💒💐       लगता है चश्मे का नंबर बढ़ गया है आपका.?     सिर्फ बड़ी चीज़ो में ही ढूंढते हो मुझे. ...

जंगल कि सीख(लघु कथा)

विनिता बैठे बैठे सोच रही थी शादी सोच समझ कर करनी चाहिए थी।वो छोटे परिवार में पली बढ़ी थी।वैसी ही आदत में भी था उसके।पर उसने खुद अपनी इच्छा से बड़े परिवार में शादी कि थी।वो जब भी अपनी दोस्त के घर जाती तो वहां उसके ताऊ ताई जी सबके बच्चे दादा दादी के बीच से उसे आने का मन ही नहीं होता था।कितना प्यार ,हंसना, बोलना, खेलने को इतने लोग।अपने घर में तो कभी कभी वो अकेले कमरे में बैठी रहती। दोस्त के घर कोई अकेलापन नहीं होता था।तभी से उसका मन था बड़े परिवार में शादी करूंगी। पर ये क्या! यहां वो उसि अकेलेपन को तरस जाती।उपर से बड़े जेठ अपने व्यापार में उसके पति के पैसे से अपनी संपत्ति बनाए जा रहे थे।रौनक बोलते मैं समझता हूं तुम्हारी बात।पर परिवार का मतलब यही होता है। छोटी बहन की शादी सर पर थी।सबकी नजरें भी मानो रौनक से ही सारी उम्मीदें लगाए बैठी थी। उफ्फ!अभी हम अलग रह रहे होते तो महल बना चुके होते।वो सोच ही रही थी कि रौनक आ गए।वो मुंह फेर लेती है।इस इंसान को कुछ भी समझाना बेकार है।रौनक समझ जाता है अनकही बातें।यही शायद इस रिश्ते की खूबसूरती थी। रौनक - प्यार से बोला "विनी चलो हम दो दिन के लि...

उठो चलो....

उठो चलो कि लहरे अभी बाकी है, आवाज से गहराई नापने को मन अभी साकी है। जी लो आज की कल किसने देखा है, मन में यादों की परत जमा लो कि एकांत में अकेलापन से झूझते बहुतों को देखा है।। चलो अपनी राह जन्हा हो मन की चाह, कि लोगों की बाते सुन बहुतों को हारते देखा है।। हंसो की धूल जाए हर गम सिकवा या शिकायत, की लोगों को बस कमियों को ही गिनते देखा है। बातों और साथ में खुशी समेटो, की पैसों के दिखावे में रिश्तों को रिश्ते देखा है।। उठो चलो कि लहरे अभी बाकी हैं, आवाज में गहराई नापने को मन अभी साकी है।।

मन सच बता देता है।(लघु कथा)

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मुनिया की उमर कम थी पर समझदारी दादी मां की बातों सी।अक्सर गांव घर से घूम के जब घर आती और देखती घर में खाना ना के बराबर बचा है तो किसी भी काकी मां का नाम ले केह देती वहां खा लिया बहुत।पर मां समझ जाती, वॊ मां जो थी।👩‍👧 थोड़ा बहुत खिला ही देती जिद्द कर। मुनिया की आधी भूख मिट जाती जब वो अपनी किताबे देखती📗। मास्टरनी जी ने घर घर बांटी थी, कहा था स्कूल आने को।पर बाबूजी कहते गरीब को खाना चाहिए होता है ना कि पढ़ाई। मां जिन मेम साहब के यहां काम करती वो अपनी बेटी के पास मुनिया को भेजना चाहती थी।उनकी बेटी ने मुनिया को बुलाया मिलने के लिए।मुनिया दीदी की बेटी को खूब खिला लेती थी। दीदी जी ने मुनिया से पूछा क्या अच्छा लगता तुझे, कोई काम आता भी है कि नहीं? मुनिया मुस्कुराकर 🙂बोली *मुझे पढ़ना पसंद है मै ना बाबू को सब पढ़ा दूंगी। दीदी खिलखिला के हंस पड़ी अरे पगली ! मैं तुझे बाबू को संभालने को ले जाने का सोच रही,तुझे पढ़वाने को ले जाऊंगी।पर सोच रही क्या करू,तू अभी ख़ुद छोटी सी है।  मुनिया ने बड़ी समझदारी से कहा*मन से पूछ लो दीदी जी। मन सही बात बता देता है।*😌 बस ये है की हम समझ पाते कि नह...

EnJoY the PaL

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Let's walk on the unknown path, Take the nature bath . Let's talk with eyes, Those are more wise. Let's forget all worries around, Together we fight without making sound. Let's not worry for tomorrow, In difficult time this memory we both will borrow. Let's laugh in this moment, This will make love image permanent.

समझ के नासमझी

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बड़े आराम से कट रही थी जिंदगी, बिना सोचे कोई बुराई, थाम कर हर रोज चले जा रहे थे.. किये जा रहे थे आराम की बंदगी।।  नजर फटी की फटी रह गई, जब वजह तुम बताए गए, बेरंग से मौसम के, और कीमत चुकाने में सासों में घुटन पाई गई।। जान के भी तुम्हें ना छोड़ पाऊँ, तो अपनी बरबादी का दोषी किसे बताऊँ! रोक दूँगी तुम्हें मैं.. कमसेकम आगे तो जिंदगियां बेहतर बना जाऊं। । # प्लास्टिक का आज का आराम, कल सबके जीवन पर लगाएगा विराम। *

अनमोल उपहार

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मेरे जीवन के अनमोल उपहार,                           तेरे आने से हर दिन लगे त्योहार।  आँचल में तुझे छुपाए,  दिन बिताए तेरे हर पल मे,  सोचूं एक चोट भी तुझे रुला ना पाए।।  मम्मी मम्मी कह कर मेरे पीछे आए,  नई शरारतों की कहनी हर रोज,  फिर भी सबका प्यारा बन जाए।। सोचा करतीं थी जो मैं,  काश एक बेटी हो जाए,  आज बड़े होते थामा यूँ तुमने,  सब एक बराबर पाए।।   भीड़ में तुम मुझें बचाते,  हर बात में तुम्हे साथ हम पाते,  फिर भी लगता जाने कियूँ,  फिर से तुम्हारा बचपन जी पाते।।